हरदा जिले में चार हजार हैंडपंप, तकनीशियन बीस कैसे होगा खराब हैंडपंप का रखरखाव

                    मुकेश दुबे                                   जिले के ग्रामीण अंचलों में संचालित चार हजार से अधिक हैंडपंपों का रखरखाव करने के लिए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा मात्र बीस हैंडपंप तकनीशियन की तैनाती की गई है। इससे सुदूर स्थित ग्रामों के हैंडपंपों को दुरुस्त करने में कई समस्याएं सामने आ रही हैं। इसमें अब उन्हें मजदूरों की मदद भी न दिए जाने से हालात बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं। हरदा----इस साल जिले में अल्पवर्षा के कारण गर्मी के मौसम में ग्रामीण अंचलों की जल व्यवस्था बिगडऩे के आसार नजर आने लगे हैं। खासकर सुदूर स्थित उन स्थानों पर जहां के अधिकांश ग्रामवासी हैंडपंपों पर पूरी तरह आश्रित हैं। जानकारी के अनुसार जिले के ग्रामीण अंचलों में पानी के साधन उपलब्ध कराने का दारोमदार संभालने वाले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सामने तकनीशियनों की कमी का संकट बना हुआ है। यूं तो हरदा में चार हजार हैंडपंपों की व्यवस्था है मगर इनका रखरखाव करने के लिए मात्र बीस तकनीशियन ही उपलब्ध हैं, जिससे उन पर काम का दबाव काफी बढ़ा हुआ है। नियमानुसार एक तकनीशियन पर लगभग 30-35 हैंडपंपों का रखरखाव करने एवं इनका संधारण करने का भार होना चाहिए मगर वर्तमान समय में हालात यह हैं कि एक-एक तकनीशियन को औसतन 300 से 350 हैंडपंपों की मरम्मत करना पड़ रही है। यह भी यदि आसपास हों तो किसी प्रकार समय निकाला जा सकता है, मगर दूर के ग्रामों तक जाने-आने में साधनों और समय की कमी भी सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। नतीजन हैंडपंप तकनीशियन अपने ऊपर आए काम के इस बोझ का तनाव नहीं झेल पा रहे हैं।
क्या हैं हालात - जानकारी के अनुसार हरदा जिले की 211 ग्राम-पंचायतों में आने वाले लगभग 500 ग्रामों में पेयजल व्यवस्था बनाए रखने के लिए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा 4005 हैंडपंपों का रखरखाव कराया जाता है। इसके लिए जिले में कार्यभारित हैंडपंप तकनीशियन 4, स्थायी 2, संविदा आधारित तकनीशियन 7 और अन्य 7 सहित कुल जमा 20 तकनीशियन उपलब्ध हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें समय-समय पर हरेक ग्राम पहुंचकर इनका नियमित रखरखाव करने के अलावा जिन ग्रामों से खराब हैंडपंपों की शिकायत आती है वहां कार्य कराना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। इससे जिले के वनांचल स्थित ग्रामों तक पहुंचकर उनका समय पर संधारण करने में अमले व समय की कमी सहित संसाधनों का टोटा होने की समस्या आए दिन सामने आती है।
   - अब मजदूरों की मदद भी नहीं - जानकारी के अनुसार साधारण खराबी वाले हैंडपंपों का संधारण करने में एक-दो लोगों की मदद से काम करना सामान्य बात है, मगर मेजर तकनीकी खामी वाले हैंडपंपों को सुधारने के लिए लगभग चार-पांच मजदूरों का होना बहुत आवश्यक है। मगर बीते कुछ समय से विभाग की ओर से मिलने वाले मजदूरों की ऐसी मदद इन्हें नहीं मिल पा रही है। खासकर हरदा जिले के खिरकिया और टिमरनी विकासखंड में यह मदद बंद कर दिए जाने से तकनीशियनों को अपना सरकारी कार्य करने में परेशान होना पड़ रहा है। गांवों के हैंडपंप तकनीकी खराबी से बंद होने की शिकायत आने पर इन्हें समय पर सुधारना आवश्यक तो है मगर साथ में मजदूर न मिलने से तकनीशियनों को ग्राम पंचायत की मदद से कुछ ग्रामवासियों का सहयोग लेना पड़ता है। इस कार्य में ये अप्रशिक्षित होने से कई बार बड़ी समस्याएं सामने आती हैं। नतीजन इन्हें विभागीय अधिकारियों की फटकार भी सुनना पड़ती है। इससे नाराज होकर खिरकिया और टिमरनी के तकनीशियनों ने मजदूर न मिलने की दशा में काम बंद करने का ऐलान कर दिया है। इस बारे में विभाग के अनुविभागीय अधिकारी जेएस ठाकुर से जब जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया कि मजदूरों के साथ विभाग द्वारा तीन साल का अनुबंध किया गया था जो अब खत्म हो गया है। नया अनुबंध होने के बाद तकनीशियनों को श्रमिक प्रदान किए जाएंगे। तब तक उन्हें स्थानीय स्तर पर अपने काम की व्यवस्था बनानी होगी। इसमें कोई कमी नहीं आना चहिए। इधर कई ग्राम पंचायतें ऐसी भी हैं जहां मजदूर न मिलने से उन्हें भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वरोजगार योजना अंतर्गत पंचायत के विकास कार्य कराने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन कारणों से तकनीशियनों को इन पंचायतों में मजदूरों की मदद मिलने की भी समस्या सामने आ जाती है।
-गर्मी में बिगड़ेंगे हालात -
अक्सर बारिश और ठंड के दिनों में ग्रामों की जल व्यवस्था ठीक-ठाक बनी रहती है। यहां प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिल ही जाता है, मगर गर्मी के दिन आने पर जब इन स्रोतों से पानी मिलना बंद हो जाता है तब लोगों की निर्भरता इन हैंडपंपों पर बढ़ जाती है। अक्सर हजार पांच सौ की आबादी वाले ग्रामों में कहने को तो आठ या दस हैंडपंप होते हैं किंतु इनमें से दो-तीन तो भूमिगत जल स्तर न होने की वजह से बंद पड़े रहते है।

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