महिलाओं ने मनाया करवा चौथ का पावन पर्ब

पति की लंबी आयु की के लिए की प्रार्थना--- हरदा -रविवार का दिन करवाचौथ का व्रत करने वाली महिलाओ के नाम रहा, रात को 8.30 बजे चाँद दिखने के साथ ही पत्नियों ने पूजा कर के, कर्वे से जल चढ़ाया और अपने पतियों की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना की। करवा चौथ के अवसर पर सुबह से ही महिलाओ का जमावड़ा बाजार में करवे का सामान खरीदता नजर आया। अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए सभी महिलाओं ने करवाचौथ का व्रत रखा। सुबह से ही महिलाओ में व्रत की तैयारियों को लेकर चर्चाएं चलती रही, बाजारों में करवे के सामान के साथ-साथ प्रसाधन, मिठाई, फुल-मालाओ की दुकानों पर महिलाओं की भीड़ नजर आई। पत्नियों ने अपने पति के लिए जमकर खरीदारी की और दूसरी तरफ पति भी अपनी धर्मपत्नियों को फूलों के गुलदस्ते तथा की उपहार खरीदते दिखाई दिए। शाम होते ही महिलाएं पूर्ण रूप से श्रृंगारित होकर पूजा के लिए नियत स्थान पर पहुंची एंव गणेश देवता को मनाने के साथ ही चाँद इंतजार किया, शाम को 8.30 बजे चाँद दिखने के साथ ही पत्नियों ने पूजा की। हिंदुस्थानी रीती-रिवाज के अनुसार मनाये गए पर्व में पूजा के बाद महिलाओं ने एक-दुसरे को कर्वे दिए और व्रत खोला। हिंदू धर्म में त्योहारों की मान्यता बहुत अधिक है। हर माह में कोई पर्व आ जाता है और गणेश चतुर्थी के पश्चात त्योहारों के मौसम की शुरुआत हो जाती है। इसी तरह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला उपवास सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक होता है। इस दिन करवाचौथ का व्रत किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की उम्र लंबी की प्रार्थना करती हैं और उनका गृहस्थ जीवन सुखध रहे इसके लिए व्रत करती हैं। पूरे भारत में हर त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है इस त्योहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। करवाचौथ व्रत के दिन एक ओर जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी ओर दिन ढलते ही विवाहिताओं की नजरें चांद के दिदार के लिये बेताब हो जाती हैं। चांद देखने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं, जिनकी सगाई हो गई हो और शादी में समय हो। पूरे भारतवर्ष में हिन्‍दू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूमधाम से करवाचौथ मनाते हैं। इस रात की रौनक अलग ही होती है। करबाचौथ से जुड़ी पुराणिक कथाएं------ करवाचौथ शादीशुदा महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इस त्योहार की महत्वता एक समय में बहुत हुआ करती थी, इस दिन सभी शादीशुदा महिलाएं इकठ्ठा होकर पूजा करती थी और पंरपराओं के अनुसार मां गौरी का पूजन करती थीं। मां गौरी भगवान शिव की पत्नी हैं इस दिन उनकी कथा सुनना शुभ माना जाता है। महाभारत के वर्ण पर्व के अनुसार करवाचौथ इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन देवी सावित्रि ने अपने पति के प्राण वापस लाने के लिए यमदूत से प्रार्थना की थी और उसके लिए व्रत किया था। एक अन्य कहानी के अनुसार महिलाएं अपने पति की रक्षा के लिए व्रत करती थी, जब उनके पति कई दिनों के लिए युद्ध पर जाते थे। इस दिन वो भूखी रहती थी और अपने सबसे सुंदर वस्त्र पहनती थीं। छलनी से चांद देखने का महत्ब----- दरअसल, इस व्रत में छलनी का महत्व इसलिए है, क्योंकि कथा के अनुसार छलनी के कारण ही एक पतिव्रता स्त्री का व्रत टूटा था। करवाचौथ की कथा के अनुसार भावुकता में आकर भाईयों ने अपनी बहन को छल से चांद की जगह छलनी की ओट से दिया दिखाकर भोजन करवा दिया। झूठा चांद देखकर भोजन करने के कारण पतिव्रता स्त्री को अपना पति खोना पड़ा। इसके बाद पूरे वर्ष उस स्त्री ने चतुर्थी तिथि का व्रत रखा। पुनः करवाचौथ को छलनी से वास्तविक चांद देखने के बाद पतिव्रता स्त्री को पति प्राप्त हुआ। छलनी का एक अर्थ छल करने वाला होता है। इसलिए महिलाएं स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चांद देखती है ताकि कोई अन्य उसे झूठा चांद दिखाकर व्रत भंग न करे। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सीखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके। करवा चौथ की जितनी भी कथाएं हैं उन सभी कथाओं में भाई द्वारा छलनी से झूठे चांद को दिखाने का वर्णन मिलता है। उस घटना को याद करने के लिए भी महिलाएं करवा चौथ का व्रत छलनी से चांद देखकर ही खोलती हैं।

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