बच्चों का भविष्य संभालने वाले का भविष्य अंधकार में
हरदा -ब्यबसायिक्ता की अंधी दौड़ में शिक्षा जैसी पवित्र कार्य को कमाई का धंधा बना लिया गया है। कुकुरमुत्ते की तरह हर वर्ष एक से बढ़कर एक नित नए निजी स्कूल खुल रहे हैं जो शासनादेशों का पालन करने का ढोंग रचाकर जहां अधिकारियों की आंखों में धूल झोंक कर आदेशों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर निर्धारित सेवा शर्तों के अनुसार निजी स्कूलों में सुविधाएं नजर नहीं आती। ढोल में पोल नजर आता है। चकाचौंध के इस दौर में बाहर से तो अच्छा-अच्छा डेकोरेशन दिखता है किंतु जैसे-जैसे करीब जाते हैं वैसे-वैसे असलियत सामने आती जाती है। बताया जाता है कि अधिकांश निजी स्कूलों में अधिक मुनाफा कमाने के लिए कम पैसे में बिना बीएड डीएड डिग्रीधारी शिक्षकों को रखा जाता है। तीन से पांच हजार में शिक्षक बेहतर परीक्षा परिणाम देकर स्कूल का नाम रोशन करने के साथ-साथ नौनिहालों एवं देश के भावी नागरिक का भविष्य सबाराते हैं। इतने पर भी उनके भविष्य की चिंता नहीं रहती है। अभिलेख में शिक्षकों को नियमानुसार दर्ज कर निर्धारित सुविधा देते हुए फंड ना तो काटा जा जाता है और ना ही जमा किया जाता है। मजदूर की तरह जब चाहा रखा और जब चाहा निकाल दिया । बिना शर्तों के रखकर उनके भविष्य से निजी स्कूलो के संचालकों द्वारा खिलवाड़ किया जा रहा है। श्रम अधिकारी व अन्य जिम्मेदार अधिकारी सेवा शर्तों का पालन शत प्रतिशत सुनिश्चित कराने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे जिनके चलते शिक्षकों को अपने वाजिब हक से वंचित होना पड़ रहा है। करीब 80 फीसदी निजी स्कूलों में शिक्षकों के साथ ऐसा बर्ताब वर्षों से हो रहा है जिसे कोई देखने व सुनने वाला नहीं है पढ़े फारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल -अधिकांश योग्य डिग्रीधारी पढ़े-लिखे बेरोजगार मजबूरी में शोषण का शिकार हो रहे हैं ।सरकारी नौकरी नहीं मिल पाने के कारण विवश होकर निजी स्कूलों में कम मानदेय पर पढ़ा रहे हैं ।शिक्षकों को बच्चों के भविष्य की चिंता रहती है किंतु संचालकों को शिक्षकों के भविष्य की तनिक भी चिंता नहीं रहती ।महंगाई के दौर में मानदेय बढ़ाने की बात करने पर दो टूक जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया जाता है और कर दिया जाता है इतने पैसे पर काम कर सकते हो तो ठीक वरना दरवाजा खुला है। बेरोजगारी का दौर है एक गया दूसरा कम पैसे पर काम करने वाला संस्था को मिल जाता है। शिक्षक की योग्यता डिग्री अनुभव से संचालकों को कोई लेना देना नहीं रहता है उनका एकमात्र मकसद रहता है कि अधिक से अधिक मुनाफा हो।
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