बरसों से भगवान भरोसे चल रहा चिकित्सालय। तड़प तड़प कर डॉक्टर का इंतजार कर रहे मरीज।

मुकेश दुबे
हरदा- जिला चिकित्सालय भगवान भरोसे लंबे समय से चल रहा है। तमाम विरोध, शिकायत के साथ भोपाल व जिले के अधिकारियों के औचक निरीक्षण के बाद भी व्यवस्थाओं में सुधार नहीं आया। जबकि कमियां एवं अव्यवस्थाएं दिखी फिर भी न तो बड़ी कार्यवाही हुई और न ही घोर अव्यवस्थाओं में सुधार आया। लिहाजा मरीजों को तड़प-तड़प कर डॉक्टरों के आने का इंतजार करना पड़ता है। डॉक्टर कब आते हैं और कब जाते हैं इस बारे में कोई भी बता नहीं सकता। मप्र शासन द्वारा भले ही उनके आने जाने का समय निश्चित कर दिया हो। किंतु वे स्वयं अपने हिसाब से ही आते हैं। प्रातः 8:30 बजे से 1:00 बजे तक का समय है। किंतु इस समय में शुक्रवार को प्रातः 9:45 बजे तक कोई डॉक्टर उपस्थित नहीं मिला। दर्द से तड़पते मरीजों को आश्वासन पर आश्वासन दिया जाता है। जिला चिकित्सालय के अन्य कर्मचारियों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि डॉक्टर के आने का समय निश्चित नहीं है। जब आ जाएं वहीं उनके आने का समय माना जाता है। शुक्रवार जैसा हाल रोजाना देखने और सुनने को मिलता है। मरीजो को रोज घोर अव्यवस्थाओं से दो चार होना पड़ता है। फिर भी कोई देखने और सुनने वाला नहीं है। जिला कलेक्टर अनय द्विवेदी ने कुछ माह पूर्व अस्पताल की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए प्रभावी कदम उठाये थे। जिसके तहत राजस्व विभाग के अधिकारियों को अस्पताल का बारी-बारी से औचक निरीक्षण करने का दायित्व सौंपा था कुछ दिनों तक निरीक्षण हुआ उन्हें तमाम कमियां देखने को मिली जो अखबारों की सुर्खियों में भी रही। किंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि किसी भी डॉक्टर के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई। निरीक्षण का सिलसिला बंद होने से डॉक्टर कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही बरतने लगे।जिसके कारण मरीज बेतहाशा परेशान है। अस्पताल से ज्यादा निजी प्रैक्टिस में दे रहे समय- जिला चिकित्सालय में पदस्थ अनेको चिकित्सक अस्पताल से ज्यादा समय निजी क्लीनिकों को देते हैं। घर पर निजी क्लीनिक खोलकर मरीजों को देखते हैं जब पूरे मरीजों को देख लेते हैं उसके बाद जिला चिकित्सालय आने की तैयारी करते हैं। यह सिलसिला बरसों से चल रहा है। सबको मालूम है फिर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और मरीजों की परेशानी को देखने सुनने के बाद भी उनके कानों में जूं नहीं रेंग रही। अस्पताल की अव्यवस्था में कब सुधार आएगा इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि जिम्मेदार अधिकारी मूकदर्शक बने हैं और गंधारी की भूमिका निभा रहे हैं।

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