कमजोरी छुपाने के लिए शिक्षक संघ हुआ लामबंद। सरकारी स्कूल के बच्चों का शैक्षणिक स्तर चिंतनीय।
हरदा।सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए प्रभावी कदम उठाया जा रहा है। इसके तहत राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वे करा एवं बेसलाइन टेस्ट लेकर उसका परीक्षण किया गया है। सर्वे में जिले के करीब 540 स्कूलों की स्थिति संतोषप्रद नहीं है। इनमें से 300 स्कूलों की चिंताजनक स्थिति है। ऐसी शालाओं के प्रधान पाठकों से चर्चा कर उन्हें बच्चों के स्तर में सुधार लाने की समझाइश दी गई और समय भी दिया गया। फिर भी बच्चों के स्तर में सुधार नहीं आया। बच्चों को शब्द पढ़ना लिखना, जोड़ना घटाना, अंग्रेजी के शब्दों को पढ़ना तक नहीं आ रहा है। निजी स्कूलों की तुलना में कई गुना अधिक मानदेय लेने के बाद भी गरीब बच्चों के शैक्षणिक स्तर में आशातीत नहीं आ रहा है। इसको गंभीरता से लेते हुए शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही की गई। कार्रवाई से बचने के लिए विरोध का तरीका अपनाया जा रहा है। सभी शिक्षक संघ लामबंद होकर अपनी कमजोरी को छुपाने व पर्दा डालने के लिए विरोध का तरीका अपना रहे हैं।
* जिला परियोजना समन्वयक डॉ आर एस तिवारी ने बताया कि शासन की मंशा के अनुरूप दिए गए लक्ष्य के अनुरूप कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करने वाले शिक्षकों के खिलाफ जहां कार्यवाही की गई है वहीं अच्छे कार्य करने वाले 150 शिक्षकों को जन शिक्षक एवं बीआरसी के माध्यम से शिक्षक दिवस 5 दिसंबर को सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में 32 बे नंबर पर आने से जिले की छवि खराब हो रही है जो अत्यंत चिंताजनक है। श्री तिबारी ने अनेक शासकीय स्कूलों की तारीफ करते हुए कहा कि उनके स्कूलों के बच्चे प्रायवेट स्कूलों के बच्चो को पीछे छोड़ देते है। डोमरीकला गांव के प्राथमिक स्कूल में भी अच्छी शिक्षा दी जा रही है ।
डीपीसी के तुगलकी फरमान के विरुद्ध लामबंद हुए शिक्षक संघ----- जिला परियोजना समन्वयक डॉ आर एस तिवारी द्वारा की गई कार्रवाई के विरोध में सभी शिक्षक संघ लामबंद हो गए हैं एवं एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन ज्ञापन सौंप रहे हैं। शिक्षक संघों के नेताओं का कहना है कि दर्ज संख्या कम होने के लिए शिक्षक जवाबदेह नहीं है। आरटीई के तहत जहां 25 परसेंट गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाया जा रहा है। वही निजी स्कूल नित्य खुल गए हैं। बच्चों के शैक्षणिक स्तर में अपेक्षित सुधार नहीं आने के पीछे मुख्य वजह शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य, ग्रामीणांचल में शिक्षकों की कमी, बच्चों के नियमित नहीं आने, अभिभावकों द्वारा बच्चों को शैक्षणिक संसाधन नहीं उपलब्ध कराने, खेतों में काम कराने, घर में पढ़ने का माहौल निर्मित नहीं करने जैसे आदि कारण है। जिससे बच्चों में अपेक्षित सुधार नहीं आ रहा है। फेल नहीं करने का नियम भी इसके लिए मुख्य रूप से जवाबदेह है। बच्चा नियमित आता नहीं। शाला में नामांकन हो गया है तो उसे अगले सत्र में नई कक्षा में दाखिला देना अनिवार्य है। यह सब कारण है जिसके चलते शिक्षा के स्तर में गिरावट आ रही है। इन बिंदुओं पर गंभीरता से विचार मंथन किया जाए तो शिक्षा स्तर में कमी के कारणों में अकेले शिक्षक दोषी नहीं होंगे। इसमें कहीं ना कहीं अभिभावकों एवं बच्चों की अभिरुचि आर्थिक स्थिति भी प्रमुख कारणों के रूप में उभरकर सामने आएगी। शिक्षकों के पक्ष एवं दलील को नजरअंदाज किया जा रहा है यह किस हद तक उचित है यह कोतूहल एवं जिज्ञासा का विषय बना हुआ है।
फ़ाइल फोटू
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