स्कूल चले अभियान की पोल खोल रहे बच्चे। कचरा बीनने को मजबूर नौनिहाल।

हरदा। स्कूल चले अभियान को प्रभावी क्रियान्वयन कर जहां एक ओर शत्-प्रतिशत नामांकन का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर शहर में सुबह से शाम तक बच्चे प्लास्टिक बोतल, कचरा एव अन्य समान बीनते हुए नजर आते है। नालियों में घुसकर प्लास्टिक व अन्य वस्तुओं को निकालकर उसे धोकर बेचते है और अपनी आजीविका चला रहे है। कोई बालक शौक से यह कार्य कतई नहीं कर सकता। निश्चित रूप से कापी, कलम और शरीर पर स्कूली ड्रेस होना चाहिए उन नौनिहालों को हाथ में टूटे फुटे प्लाटिस्क का कचरा और शरीर पर फटे पुराने मैले कपड़े है। इस असलियत को छिपाकर प्रभावशाली आंकड़े जिला शिक्षा समिति बैठकों में पेश किए जाते है। तमाम वादे घोषणाओं के बाद भी बच्चों की स्थिति में सुधार नहीं आ रहा है। इसके लिए दोषी कौन है यह यक्ष प्रश्न बना गया है।
जिम्मेदार जिम्मेदारी से फेर रहे मुह--- माता-पिता, उनकी गरीबी, स्कूल के शिक्षक, किसे दोषी ठहराया जाये यह समझ से परे है। कचरा बीनने वालों बच्चों पर नजर नहीं रखी जा रही जिसके कारण ऐसी स्थिति निर्मित है। उन्हें पकड़कर जानकारी हासिल की जाए और कारणों का पता लगाया जाए तो निश्चित रूप से स्थिति स्पष्ट हो सकती है। किंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि इसे देखने सुनने की किसी को फुर्सत नहीं है। शासन-प्रशासन अधिकारी-कर्मचारी आंकड़ों भी काजगी गरी के खेल में इस कदर उलझे हुए है कि उन्हें इंसानियत मानवता के लिहाज से भी नौनिहालों का भविष्य खराब होता दिखाई नहीं दे रहा है।
नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय--- कचरे बीनकर वेशकिमती समय गंवाने वाले नौनिहालों को भविष्य के बारे में समझ नहीं है यदि, होती तो निश्चित रूप से पढ़ाई कर मेहनत परिश्रम करके अपने आने वाले कल को सुनहरा एवं स्र्वाणिम बनाने में पीछे नहीं हटते। जिला मुख्यालय में कचरा बिनने वाले बच्चों के समूह को देखकर ऐसा लगता है कि स्कूल चले अभियान के क्रियान्वयन में कही न कही कोताही अवश्य बरती जा रही है। जिससे कारण १४ वर्ष के कम उम्र के बच्चे ऐसा काम कर रहे है। आई डी आधार कार्ड सभी का बना है। शाला के अभिलेख में ऐसे बच्चे दर्ज होगे, जिन्हे अनुपस्थित दिखाकर कर्तव्यों के निर्वहन की औपचारिकता पूरी की जा रही है। ऐसे बच्चों की खोजबीन में दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही है। आवासीय विद्यालय भी संचालित है। ऐसे बच्च्चों का पता लगाकर उन्हें यदि आवासीय विद्यालयों में दााखिला दिलवा दिया जाए तो उनका भविष्य अंधकारमय होने से बच सकता है।
जिम्मेदार अधिकारी जनप्रतिनिधियों की बेरुखी-- जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों द्वरा उत्तरदायित्यों के निर्वहन में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। जिसके कारण ऐसे हालत बन रहे है। यदि जिम्मेदारी निभाते तो कचरा बिनते हुए बच्चे नजर नहीं आते। शत-प्रतिशत नामांकन की पोल खोलने कचरा बिनते बच्चे की तरफ श्रम विभाग, पुलिस, स्कूल शिक्षा विभाग, राजस्व विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों भी ध्यान नहीं दे रहे है। जो अत्यंत दुर्भायपुर्ण और विचारणीय है। क्या कहते हैं जवाबदार---
जुलाई माह में स्कूल चलें हम अभियान के तहत बच्चों का प्रवेश कराया जाता है। कुछ बच्चे एक दिन शाला आते हैं और 5 दिन छुट्टी मारते हैं। ऐसे कुछ बच्चे हो सकते जो शाला से छुट्टी के दौरान यह कार्य करते होंगे। मैं दिखाता हूं ।
आर एस तिवारी। जिला परियोजना समन्वयक अधिकारी जिला हरदा

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